Whats REALLY Hidden Below the Ice of Antarctica
टिकाटिका की। अनजान और खौफनाक दुनिया बेशुमार मिस्ट्री से भरी हुई है। कुछ को तो सॉल्व कर लिया गया है, लेकिन कई अभी तक साइंस के भी पल्ले नहीं पड़ रही। बर्फ की मोटी तह के नीचे कौन सी दुनिया बसती है और यहां से मिलने वाला 10 लाख साल पुराना आइस क्यूब हमें टाइम ट्रैवल करवा कर हमारे अर्थ के पास्ट में कैसे लेकर जाता है? एमटीवी के विडियोज में एक बार फिर से खुशामदी नाजरीन अंटार्कटिका जिसको दुनिया का बॉटम या फिर साउथ पोल भी कहा जाता है। यहां की आइस शीट्स की गहराई फोर पॉइंट सेवेन किलोमीटर तक रिकॉर्ड की गई है। यह इतनी गहराई है जिसमें बुर्ज खलीफा जितनी पाँच बिल्डिंग्स को एक दूसरे के ऊपर खड़ा किया जा सकता है। इस बर्फ के अंदर लाखों साल पुराने राज आज भी दफन हैं। सबसे पहले हम जानेंगे यहां की बर्फ के नीचे छुपी जिंदगी के बारे में। नंबर वन टू थाउजेंड टू में रिसर्चर्स ने सैटेलाइट इमेज की मदद से अंटार्कटिका में मौजूद लार्सेन बी आई शेल्फ पर एक गैर मामूली निशान देखा। इनको इस पर शक तो तब हुआ जब क्रैक जैसा दिखने वाला निशान टू थाउजेंड ट्वेंटी वन के बाद की फोटोज में ही देखा जा सकता था। उससे पहले ऐसा कोई निशान वहां मौजूद नहीं था। उन्होंने इस क्रैक को इनवेस्टिगेशन करने के लिए एक हॉट वॉटर ड्रिल के आगे कैमरा लगाकर यहां सुराख करना शुरू किया। करीब 500 मीटर की गहराई पर जाकर ड्रिल को रोकना पड़ गया क्योंकि ड्रिल पर लगे कैमरा ने अंटार्कटिका के नीचे छुपी एक अजीब दुनिया का मंजर रिकॉर्ड कर लिया था। आइस शेल्फ के बीच एक सीक्रेट रिवर गुजर रही थी, जिसमें एक केव के अंदर हजारों लाखों एमपी पॉट्स
मौजूद थे। एमपी पॉट्स की यह किस्म श्रिंप जिसे अक्सर जिंगा भी कहते हैं, उससे काफी मिलती जुलती थी, जो ड्रिल के आने की वजह से काफी एक्टिव नजर आ रही थी। पर सवाल यह है कि अंटार्कटिका में एक रिमोट आइस शेल्फ के 500 मीटर अंदर एमपी पॉट्स कहां से आए और यह जिंदा रहने के लिए क्या खाते होंगे? एक्सपर्ट्स का मानना है कि समंदर में तो झींगे मरे हुए डी कंपोज प्लांट्स खाते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अंटार्कटिका की इस सीक्रेट रिवर में जरूर कभी न कभी प्लांट्स भी होते होंगे, जिनको खाकर यह अपनी दुनिया बसाये बैठे हैं। नंबर सिक्स समंदर का अभी तक का सबसे गहरा पॉइंट चैलेंजर डीप है। दूसरे नंबर पर ब्राउन डीप, लेकिन तीसरा गहरा पॉइंट अंटार्कटिका के सदर्न ओशन में मौजूद सेक्टोरियल डीप के नाम से जाना जाता है। इसको टू थाउजेंड टीन में डिस्कवर किया गया था, जिसकी गहराई सेवेन थाउजंड फोर थर्टी सेवेन मीटर्स कैलकुलेट की गई है। सेक्टोरियल डीप को सोनार स्कैनिंग की मदद से अंटार्कटिका के करीब डिटेक्ट किया गया है। इसमें शिप पर सोनार स्कैनर लगाकर सदर्न सी के बर्फीले पानी पर चलाया जाता है। अभी तक सी फ्लोर का जो मैप सोनार स्कैनिंग ने बनाया है, उसमें 1200 टेस्ट लगे हैं, लेकिन अभी भी रिसर्चर यह जान नहीं पाए कि यह पॉइंट कैसे बना था और इसका आसपास के समंदर फर्स्ट के साथ क्या कनेक्शन है। नंबर फाइव टू थाउजेंड ट्वेंटी टू में अंटार्कटिका से गुजरने वाली एक क्रूज लाइन के पैसेंजर्स ने पानी में एक बहुत बड़ी जेलीफिश देखी। क्रूज के ऑपरेटर ने सबमर्सिबल डिप्लॉय की और पैसेंजर्स को पानी के अंदर जेलीफिश का नजारा दिखाने ले गया। यह एक बहुत बड़ी
जेलीफिश थी। करीब थर्टी थ्री फीट बड़ी। इसको जायंट फैंटम जेलीफिश कहा जाता है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि फैंटम जेलीफिश नॉर्मली ओशियन की 3500 फीट की गहराई में रहती हैं। पर इसको अंटार्कटिका के समंदर की सतह पर देखा गया है। अभी तक रिसर्चर्स को कन्फर्म नहीं है कि इतनी बड़ी जेलीफिश इस रीजन में क्या कर रही है और वह भी समंदर की सतह पर। नंबर फोर अंटार्कटिका की वीरान बर्फीली वादियों के बीच में रिसर्चर्स को बर्फ के अंदर से एशियन रेन फॉरेस्ट के सबूत मिले हैं, जो 9 करोड़ साल पुराने हैं। यह डिस्कवरी अंटार्कटिका की उस दुनिया का सबूत है, जो बरसों पहले खो चुकी थी। यह फॉसिल जंगल बर्फ से ढके समंदर, फर्श के भी नीचे से दरियाफ्त हुआ है, जिसमें दरख्तों की जड़ें पॉलिन और उनके बीच पाए गए हैं। रेडियोकार्बन डेटिंग से यह पता लगा कि इनका ताल्लुक ब्रिटिश पीरियड से है। वह वक्त जब अर्थ के एटमॉस्फेयर में कार्बन डाय ऑक्साइड ज्यादा होने की वजह से यहां फ़रमाइश भी ज्यादा थी। यह फॉसिल्स अंटार्कटिका का ऐसा नक्शा बता रहे हैं, जब यहां हरी भरी वादियां और रंगबिरंगी फील्ड हुआ करती थी। इसके इलावा जीरो नाइन में यहां से निकलने वाला कोयला इस बात की निशानी है कि अंटार्कटिका का रेनफॉरेस्ट कई करोड़ साल तक यहां मौजूद था, जो अब फॉसिल फ्यूल में कन्वर्ट हो चुका है। नंबर थ्री एंटीक। कि बंजर बर्फ के अंदर से अभी तक ढेर सारे मीडिया राइट्स भी मिल चुके हैं। यह कोई आम पत्थर नहीं बल्कि एक बहुत बड़ी यूनिवर्स का सबूत हैं। इनमें से कई मिट्टी और राइट का हमारे पड़ोसी प्लैनेट मार्स से ताल्लुक है। इनमें से एक मिट्ट
राइट, जिसका नाम एएलएच फोर डबल जीरो वन है और यह हमारे सोलर सिस्टम का सबसे पुराना ऑब्जेक्ट है। करीब साढ़े 4 अरब साल पुराना इस मीडिया राइट ने सिक्स में हेडलाइंस बनाई थी। जब साइंटिस्ट ने यह एलान किया कि मार से आए मिट्टी राइट में माइक्रो फॉसिल्स के एविडेंस मिले हैं, जिसका मतलब है कि जब यह मिट्टी राइट मार्स से टूटकर यहां आया था, उस वक्त मार्स पर जिंदगी मौजूद थी। साइंटिस्ट के इन दावों की वजह से ही मार्स पर आज जिंदगी ढूंढने की कोशिश की जा रही है। इस मिट्टी राइट से साइंटिस्ट को मौका मिला कि वह मार्स के एटमॉस्फियर और वहां की वॉल के एक्टिविटी पर रिसर्च कर सकें। इसमें कुछ ऐसे मिनरल्स भी पाए गए हैं, जो सिर्फ पानी में होते हैं, जो इस बात का सबूत है कि मार्स पर पहले पानी बहुत ज्यादा मुक्तार में बहता था। नंबर टू हममें से अक्सर लोगों के जहन में एक सवाल आता है कि साइंटिस्ट को अर्थ के पास्ट एटमॉस्फियर के बारे में इतना एक्यूरेट कैसे पता चलता है? यह राज भी अंटार्कटिका की बर्फ के अंदर इंसिडेंट आइस क्यूब में मौजूद है। यहां पिछले हजारों नहीं लाखों सालों से बर्फ मेल्ट नहीं हुई, जिसका मतलब है कि इनके अंदर उस वक्त के एटमॉस्फियर के एयर बबल्स आज तक प्रिजर्व हैं। यहां तक पहुंचने के लिए आइस के पूरे कोर को ड्रिल करके बाहर निकाला जाता है। जितना गहरा कोर बाहर निकाला जाएगा, उतना ही टाइम में पीछे जाना आसान होगा। बर्फ की हर लेयर के अंदर मौजूद एयर बबल्स हर एक साल की एटमॉस्फेरिक कंडीशंस को महफूज रखकर बैठे हैं। यह एंशियंट एयर के बबल हैं, जिनको हजारों लाखों सालों से कभी डिस्टर्ब नहीं किया गया। इनमें मौजूद मुख्तलिफ गैसेज पर स्टडी करके साइंटिस्ट अर्थ के कदीम दौर की एक झलक को दोबारा से पेंट करने में कामयाब हुए हैं। 10 लाख साल पहले बना यह आइस कोर उस वक्त का है, जब अर्थ का क्लाइमेट साइकल फोर्टी थाउजेंड ईयर्स बाद चेंज होता था। इसके बाद यह साइकल 1 लाख सालों के बाद बदलने लगा, जो अभी तक चलता आ रहा है। इन आइस कोर्स की मदद से अर्थ का फ्यूचर क्लाइमेट भी प्रिडिक्ट करना बहुत आसान हो गया है। जैसे हर हजार सालों के बाद कौन से तूफान और सैलाब दुनिया में आते रहे हैं और इनको अब अगली बार कब आना है, यह सारी प्रिडिक्शन इन स्कोर्स की मदद से ही की जाती है। और अब नंबर वन फिफ्टी में अंटार्कटिका की आइस सीट के नीचे एक बहुत बड़ी माउंटेन रेंज डिस्कवर की जा चुकी है, जिसको गैंबल सेफ माउंटेन रेंज कहा जाता है। 1200 किलोमीटर तक फैली हुई इस माउंटेन रेंज के पहाड़ 3000 मीटर तक ऊंचे हैं और हैरानी की बात यह है कि यह पहाड़ दुनिया में मौजूद दूसरे पहाड़ों से काफी अलग हैं। नॉर्मली जिस एरिया में यह पहाड़ मौजूद हैं, इनको बहुत पुराना होना चाहिए, लेकिन इनकी बनावट बता रही है कि यह इतने पुराने नहीं हैं। बर्फ के कई किलोमीटर नीचे इनकी मौजूदगी भी संस्थानों को परेशान किए हुए है। क्योंकि पहाड़ ज्यादातर टेक्टोनिक प्लेट्स की मूवमेंट से बनते हैं। लेकिन अंटार्कटिका में ऐसी कोई मूवमेंट नहीं होती जिसका मतलब यह हुआ कि यह पहाड़ जमीन के अंदर मौजूद मैग्मा के उबलने की वजह से उभरे हैं। लेकिन अभी तक इस बात का संस्थानों के पास कोई सबूत नहीं। उम्मीद है जेम टीवी की यह विडियो भी आप लोग भरपूर लाइक और शेयर करेंगे। आप लोगों के प्यार भरे कॉमेंट्स का बेहद शुक्रिया। मिलते हैं अगली शानदार विडियो में।
Comments
Post a Comment